बचपन से ही हम अपनी कक्षा के उन
बालकों में शामिल थे जिनसे लड़कियों को कोई सरोकार नहीं होता था| उनसे हमारा पारस्परिक संवाद हमारे
जन्मदिन पर शुभकामनाओं तक ही सीमित था| वह भी तब, जब हम उन्हें चॉक्लेट दिया करते थे| बड़े होकर भी बात कुछ वैसी ही रही| बस चॉक्लेट देने की परंपरा समाप्त हो गयी| ऐसे लालन पालन के कारण मादा प्रजाति को ले कर हमारा
जीके कमजोर रह गया| हालांकि इस बात का कोई विशेष मलाल नहीं रहा|
कौलेज पास कर जब नौकरी करने शहर के
बाहर निकले और महानगर पहुंचे, तो हमारी आँखें ही चौंधिया गईं| प्रेम रस का ऐसा दरिया हमारे इर्द गिर्द कभी भी नहीं बहा था| हम तो “फ़ौरेवर बजरंग दल” वाले आदमी
थे, लेकिन ऐसा वातावरण देख कर हम भी (ज़ाकिर खान के शब्दों में) पिघल गए| सहकर्मियों के पूछने पर हमने कह दिया “हम यहाँ काम
करने आए हैं, अय्याशी नहीं|” लेकिन यह प्रपंच ज़्यादा दिन चल नहीं सका| औफिस में वाटर कूलर के सामने लगी पंक्ति में दो
युवतियाँ बात कर रही थी कि कल का उनका “डेट” कैसा रहा|
“यू कांट ट्रस्ट पीपल या| टिंडर पर अच्छी डीपी लगाई थी| पर सामने मिली तो टकला निकला|”
“मेरा वाला देखने में तो अच्छा था
लेकिन बहुत बड़बोला था| इतना सेल्फ-सेंटर्ड| पूरे टाइम अपने ही बारे में बात कर रहा था| मेरी जॉब, मेरा जिम, मेरी कार! आई वास सो अनौएड या|”
हमारी दिली तमन्ना रही है कि
लड़कियों से एक बार ज़रूर पूछें कि “दीदी” को “दी” और “यार” को “या” बोल बोल कर बचाए
गए समय का सदुपयोग वे किस प्रकार से करती हैं| किन्तु आज प्राथमिकताएँ अलग थी| हमारे मन में प्रेम की मधुर बंसी
बज रही थी और उसे हम भाषा की परिशुद्धता जैसे तुच्छ कारणों से बेसुरा नहीं करना
चाहते थे| हमने नोट कर लिया| एप का नाम था “टिंडर”| भला हो इन वैज्ञानिकों का जिन्होने
ऐसी मूल्यवान वस्तु का आविष्कार किया|
घर आते ही सब कुछ फेंक फाक के सबसे
पहले यह दैवीय एप इनस्टाल किया| इसमे सबसे पहले हमने अपना प्रोफाइल बनाया| फोटो बहुत ढूँढने के बाद लगाई- एकदम चुन के- कोट पहने
हुए एक बार फोटो खिंचवायी थी| बड़े भैया की शादी में उधारी का काला कोट लिया था जिसे हम शादी में पहन पहन कर इतरा
रहे थे| इससे अच्छी फोटो तो हो ही नहीं सकती| फिर हमने लेफ्ट और राइट स्वाइप का फंडा
सीखा| हम बहुत ही साफ दिल मनुष्य हैं, किसी के साथ भेदभाव नहीं करते| हमने सभी लड़कियों को पूरी श्रद्धा के
साथ राइट स्वाइप किया, अर्थात उन्हें “मित्रता” का आमंत्रण भेजा| दिन पर दिन बीतते गए पर हम पर कृपा नहीं हुई| मंदिर में दान दक्षिणा भी की, लेकिन कोई उस तरफ से जवाब ही ना मिले| यहाँ हमें आधुनिक नारीवाद और महिला
की स्वतन्त्रता जैसे विषयों का मूल अर्थ समझ आया| पर इसमें भी कोई शंका नहीं की प्राचीन काल में भी कोई
कन्या हमें अपने स्वयंवर में नहीं चुनती|
पर प्रभु के घर देर है, अंधेर नहीं| एक दिन हमें भी टिंडर मैच मिल गया| कसम से इतनी प्रसन्नता हमें आखिरी बार
कब हुई थी, इसका हमें कोई अंदाज़ा नहीं| लड़की दिखने में सुंदर थी| उसके कुछ बाल नीले रंग के थे| इसके अलावा उसके होंठों के नीचे कुछ धातु के टुकड़े चिपके से थे| हमारी कल्पनाओं में हमारी जीवन संगिनी
इससे कुछ भिन्न थी| मगर मजबूरी का नाम महात्मा गांधी| इसलिए हमने भी बात आगे बढ़ाने का निश्चय किया| “मिली” ने काम-धंधे और पसंद नापसंद जानने के बाद मिलने
की इच्छा व्यक्त की| अंधा क्या मांगता? दो आँखें| हमने फौरन हामी भर दी|
“तो आप कहाँ मिलना पसंद करेंगी मिली
जी?”
“प्लीज़ कौल मी मिली| चॉक्लेट डिलाइट चलते हैं| आई जस्ट लव देयर फ्रेंच क्रीम चॉक्लेट
शेक|”
हम कभी चॉक्लेट डिलाइट नहीं गए थे| लेकिन इससे कोई अंतर नहीं पड़ता| मिली जी हमें इराक़ और सीरिया में इस्लामिक
स्टेट के मुख्यालय भी बुलाती तो भी हम अवश्य जाते| इसलिए हमने तत्काल डेट फिक्स की|
तय दिन और समय पर मिली जी से भेंट हुई| आंशिक नीले बाल एवं धातु छेदित होंठों
के अलावा उनकी जींस पर दृष्टि गयी जिसमें जगह जगह चीरा लगा हुआ था| पीले रंग की टॉप पर बहुत कुछ लिखा हुआ
था जिसका (हमेशा की तरह) कोई अर्थ नहीं निकलता था| हमने दोस्त से सुझाव लेकर सीधी सादी वेषभूषा पहन रखी थी| एक कमीज़ और नीचे जींस| ज़ाहिर है, हमारा फ़ैशन कोश्यंट्ट मिली जी की तुलना में बहुत ही निराशाजनक
था| तथापि, हमने हिम्मत नहीं हारी और अपना आत्म विश्वास बनाए रखा| बैठ जाने के उपरांत मिली जी चॉक्लेट
डिलाइट की प्रशंसा के पुल बांधने लगीं| मैं हैरान रह गया| इन्हें तो यहाँ के लगभग हर पकवान का नाम, उसकी विशेषता, उसकी गुणवत्ता आदि का प्रचुर ज्ञान था| हमारी स्थिति इसके ठीक विपरीत थी| हम तो अगरवाल स्वीट्स में दही समोसा
खाने वाले व्यक्ति थे| हम तो यहाँ का मेन्यू देख कर चकरा गए| भोजन का इतना व्यापक वर्गीकरण हमारे हौसले पस्त कर रहा
था| सरकार को चाहिए कि स्किल इंडिया योजना
के तहत एक प्रोग्राम बड़े भोजनालय से भोजन और्डर करने पर भी बनाया जाए|
“सो वॉट विल यू हैव?” मिली जी ने प्रश्न किया| “लेडीस फर्स्ट” हमने शिष्टता के आवरण
में अपनी अनभिज्ञता को छुपाने प्रयास किया| मिली जी मुस्कुरा दीं| उन्होने पूरे डेढ़ मिनट तक अपना और्डर दिया| हमने यह रणनीति बना रखी थी कि कुछ समझ
ना आए तो मिली जी के और्डर को ही दोहरा देंगे| पर इतना लंबा विवरण याद रख पाना हमारे बस का नहीं था| अब बैरा (बैरा माने वेटर) हमारी तरफ
मुड़ा| हमने अपना चेहरा किसी शुतुरमुर्ग की
भांति मेनू में छुपा लिया| “हे प्रभु! हमने ऐसे कौन से पाप किए थे जो आज हमें ऐसा दिन देखना पड़ रहा है?” कुछ समझ कर हमने बैरे से कहा “एक
सैन्विच ले आइये|” बैरा मुस्कुरा दिया| उसे समझ आ गया कि आज का मुर्गा मिल गया है|
“सर हमारी मेक यूअर ओन सैन्विच पौलिसी
है| तो आप ब्रेड कौन सा लेंगे?”
“जी?”
“सर ब्रेड कौन सी लेंगे? हमारे पास 6 तरह के ब्रेड हैं” उसने
विकल्पों की तरफ उंगली दिखते हुए कहा| हमने भी “ये वाली” कह कर तीसरी वाली ब्रेड का चयन किया| हमें तनिक भी जानकारी नहीं थी कि हमने
क्या सिलेक्ट किया है|
हमें लगा पीछा छूटा| लेकिन सवाल तो अभी बाकी थे|
“सर वेजिटबल्स कौन कौन से लेंगे?”
हम कुछ नहीं बोल पाये| उसने फिर से 6 विकल्प दिये| हमको समझ नहीं आया, हमने कहा “सारे डाल दो”| मिली जी चेहरा दूसरी तरफ कर हंसने लगीं|
पर अभी तो हमें और जलील होना बाकी था| “सर इसमे सौस कौन कौन से लेंगे?”
यकीन मानिए हमारी आँखों में आँसू आ
गए| मिली जी को शायद दया आई और उन्होने
हमारी ओर से “मेयनीज़ और रेड चिल्ली सौस” निर्देश दे कर हमें कुछ राहत दिलाई| हमने उनकी तरफ मुस्कुरा कर देखा| नीले बाल और धातु के टुकड़े अब धुंधलाने
लगे थे| हम उनको दिल से साधुवाद दे रहे थे|
किन्तु ये मनहूस बैरा अब तक खड़ा ही
था| कहने लगा, ”सर ड्रिंक्स में कुछ लेंगे?”
मुझे बहुत क्रोध आया| मैंने मेनू उठाया और पहला ही विकल्प
उसे बता दिया| “वर्जिन मोजितो ले आओ|”
तभी मिली जी बोल उठीं, “इट्स मोहितो नोट मोजितो! डह!” इस कथन में अभीमान
था| हमने अपने साधुवाद वापस ले लिए| और उनकी ओर देख कर बोला, “ऐसे नीले बाल क्यों किए आपने? बेढंगा लग रहा है|”
बैरा थैंक यू सर बोल कर चला गया| उसे समझ आ गया कि माहौल बिगड़ चुका है|
“मेरी डीपी में तो साफ दिख रहा है कि
मैंने अपने बाल कलर कराये हैं| तो आप आए ही क्यों? पहले ही मना कर देते|”
मिली जी का तर्क अचूक था| हमने शांत रहना उचित समझा| मिली जी ने उठ कर चले जाना उचित समझा| उन्हें जाते देख हमारे अंदर एक साथ
दुख और सुख की भावनाएँ उठी| हम समझ नहीं पाये हम क्या महसूस कर रहे हैं| शायद हमने गलती कर दी| पर उन्हें भी हमें सम्मान देना चाहिए था| क्या टिंडर पर सारी लड़कियां ऐसी ही
होती हैं? हम इन सब से दूर ही ठीक हैं| हमें अपना गाँव याद आने लगा| अगरवाल के दही समोसे याद आने लगे|
बैरा खाना ले कर आया और हमसे पूछा, “सर बिल ले आऊं?”