विशाल घर पर पहुंचा तो शीला टीवी देख रही थी| वह
चिढ़ गया| यह हमारा नैसर्गिक गुण है कि जिससे हम नाराज़ हैं, उसकी खुशी या सुख शांति हमसे बर्दाश्त नहीं होती|
हम चाहते हैं कि जिस कुंठा ने हमें ग्रसित कर रखा है, वैसी
ही कोई भावना उस व्यक्ति को भी प्रभावित करे जिससे हमारी अनबन है, और जब मामला धर्मपत्नी का हो, तब तो बात और सिरियस
हो जाती है| यह तनाव का माहौल एक हफ्ते से घर में बना हुआ था| एक हफ्ते पहले विशाल ने अपने औफिस में टीम मैनेजर द्वारा फटकार लगाने की बात शीला को बताई थी| शीला ने अपनी माँ को यह बात बता कर अपना परंपरागत कर्तव्य पूरा किया| वह दांपत्य जीवन की निजता जैसे विषयों से अनभिज्ञ थी| वह बचपन से हर बात अपनी माँ को बताते आई थी| विवाह
हो जाने के उपरांत इसमे कोई बदलाव उसे ज़रूरी नहीं लगा| लेकिन
विशाल को यह बात चुभ गयी| उसकी सास ने बकायदा फोन कर के अपनी
सहानुभूति प्रकट की; किन्तु यह सहानुभूति उसके घाव पर मलहम
के बजाए मिर्ची जैसी रगड़ रही थी| फोन रखते ही वह शीला पर बरस
पड़ा, “तुम्हें क्या ज़रूरत थी यह बात अपनी माँ से कहने की? ज़रूरी है कि मैं तुमसे जो भी कहूँ, वह तुम अपनी माँ
को आगे कह दो?”
शीला स्तब्ध रह गयी| उसने पहले भी अपनी माँ को कई चीज़ें बताई
थीं लेकिन विशाल ने ऐसी प्रतिक्रिया पहली बार दी थी| पति के
अपमान की बात मायके तक पहुँच गयी, तो इसमे ऐसा कौन सी आफत आ
गयी? दोनों में भरपूर बहस हुई| उस रात
दोनों ने भोजन नहीं किया|
विशाल बहुत दुखी था, उसके आत्म-सम्मान को गहरी चोट पहुंची थी| जब तक शीला अपने इस अक्षम्य अपराध के लिए क्षमा नहीं मांगती, तब तक वह उससे बात भी नहीं करने वाला था| कुछ
ज़्यादा नहीं, बस माफी मांग ले और कह दे कि आगे से कभी ऐसा
नहीं करेगी| पति-पत्नी की बात बाहर नहीं जाएगी, तो वह उसे माफ करने को तैयार था| शीला अलग ही
दुनिया में थी| उसका आज औफिस में मन नहीं लग रहा था| वह यह बात भूल नहीं पा रही थी कि उसके पति ने उसके साथ ऐसा दुर्व्यवहार
किया| अगर आराम से ही कह देते, तो क्या
मैं मना कर देती? मुझे क्या खुशी मिलती है उनको दुख पहुंचा
के? शीला को उम्मीद थी कि विशाल इस वक़्त गुस्से में हैं, और गुस्सा उतरते ही वे आ कर उससे माफी मांगेंगे और फिर शीला खुद माफी
मांगेगी और विशाल के लिए गाजर का हलवा भी बनाएगी| यह बता
पाना मुश्किल है कि इवोल्यूशन के किस दौर में महिलाओं ने यह भाँप लिया कि
स्वादिष्ट भोजन परोस कर पुरुषों से लगभग हर बात मनवायी जा सकती है, किन्तु यह सत्य अवश्य है और व्यावहारिक भी| इस बात
का पुरुष समाज को भी आभास है, लेकिन इसका कोई विशेष समाधान
उनके पास नहीं है|
आपने अंदाज़ा लगा लिया होगा कि उसी रात विशाल और शीला में
द्वितीय युद्ध हुआ| इस बार छींटाकशी कुछ ज़्यादा हो गयी| दोनों
ऐसी बातें भी बोल गए जो उनके सम्मानित संबंधी पीठ पीछे बोलते थे| क्रोध को कुछ सोचकर ही मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु कहा गया है| आप वह सब कुछ बोल जाते हैं या कर जाते हैं जो आप बोलना या करना नहीं
चाहते| बात बहुत बिगड़ गयी| शीला यदि
गृहणी होती, तो अब तक मायके जाने की तयारी शुरू कर चुकी होती| किन्तु नौकरी करता व्यक्ति जो वेतन कमाता है, उसके
बदले कुछ बेड़ियों के बंधन में बंध जाता है| इसलिए दोनों में
से किसी ने भी घर नहीं छोढ़ा|
एक हफ्ते बाद भी दोनों में मन मुटाव कम नहीं हुआ| शीला
टीवी देख रही है और पति को नज़र-अंदाज़ कर रही है| विशाल फ्रिज
से पानी निकाल के पीते हुए सोच रहा है कि मैंने क्यों इस लड़की से शादी की| इससे अच्छा तो अकेला रहता| ज़िंदगी नरक हो गयी है| तलाक अभी दे सकता हूँ| कल को बच्चे होंगे तब और
मुश्किल होगी| हाँ आज बदनामी होगी लेकिन लोक लाज के चलते मैं
ऐसा जीवन तो नहीं जी सकता| बोलने वाले तो चुप हो जाएंगे| कम से कम जीवन सँवर जाएगा| अरेंज्ड मैरिज करने से
यही होता है| काश कि मैंने कुछ और समय ले कर अपने पसंद कि
लड़की से शादी की होती| जीवन में शांति होती|
शीला के फोन की घंटी से विशाल के अविरल विचारों की धारा रुक
गयी| शीला का चेहरा एकदम से बदल गया| वह बहुत डरी हुई लग
रही थी|
“लेकिन सर डाटा तो सिर्फ मेरे पीसी में था और मेरा पासवर्ड
सिर्फ मेरे पास है| लीक कैसे हो सकता है?”
“सर लेकिन आप लोग मुझे भी तो अपना साइड रखने का एक चान्स
दीजिये| आप मुझे दो साल से जानते हैं, आपको लगता है कि मैं
ऐसी बेईमानी करूंगी? सर प्लीज़ लिसन टू मी|”