Wednesday 13 March 2019

हृदय परिवर्तन

दिनेश सेठ करोड़ों की संपत्ति के मालिक होने के बाद भी साधारण जीवन व्यतीत करते थे| गलत ना समझें, वे पिछड़े लोगों में से नहीं थे| उस शहर में अपने व्यापार को इन्टरनेट पर लाने वाले वे प्रथम व्यक्ति थे| समय के साथ आगे बढ़ना पसंद करते थे| लेकिन दिखावा करना उनका स्वभाव नहीं था| दो तल्ले का मकान, आँगन में बगीचा, मारुति की पाँच सीटर कार, और 15000 का मोबाइल फोन| इससे ज़्यादा की ज़रूरत उन्हें महसूस नहीं होती थी, और दूसरे को प्रभावित करने की उनकी कोई इच्छा नहीं थी| समाज के लोग भी उनके इस गुण की तारीफ करते|

"चाहें तो 4 बंगले खरीद लें, लेकिन जो मेहनत से कमाता है, वो पैसे की कीमत जानता है| बड़े भले व्यक्ति हैं"

"इतना धन इकट्ठा करने के बाद भी उसका घमंड नहीं करते| इतना सादा जीवन; यही महान व्यक्तित्व का परिचायक है"|

उगते सूरज को सब प्रणाम करते हैं| सम्पन्न वर्ग जो भी करे वह बाकी जनों के लिए अनुसरण योग्य पथ बन जाता है, अन्यथा सादा जीवन तो स्वेच्छा से माध्यम वर्ग के भी कई परिवार करते हैं, किन्तु उन्हें कटाक्ष और व्यंग्य का पात्र बना दिया जाता है|

दिनेश सेठ अपने महीने का हिसाब लगा रहे थे कि तभी वहाँ औसत कद काठी का एक पुरुष हाथ जोड़ते हुए आया| दिनेश सेठ ने गौर से देखा तो उसे पहचान लिया| "उत्तम! यहाँ क्यों आया है?" सेठ जी के माथे पर बल पड़ गए| उत्तम को 3 साल पहले उन्होने नौकरी से निकाल दिया था| उत्तम शराब पी कर काम पर आता था, और  यह बात सेठ जी को बिलकुल पसंद नहीं थी| अपने उदारवादी स्वभाव के चलते उसे दो बार चेतावनी भी दी, लेकिन उत्तम नहीं सुधरा| तीसरी बार सेठ ने उस नशेड़ी को कौलर पकड़ कर बाहर निकाल दिया| फिर कभी उत्तम उस तरफ नहीं आया| बाद में सेठ जी को ये  खबर भी आई कि चोरी चकारी के चक्कर में उसे जेल हो गयी है| आज तीन साल बाद भी उत्तम को देख कर उन्हें कोई विशेष प्रसन्नता नहीं हुई|

"सेठ जी मुझे माफ कर दीजिये| आपने मुझे नौकरी पर रखा, मुझे गलत आदतों से दूर रहने की बात भी समझाई, लेकिन मैं ऐसा मूर्ख, कि मैंने कभी आपकी बात मानी ही नहीं| मुझे माफ कर दीजिये" यह कहते हुए वह सेठ के पैरों में गिर गया| सेठ जी चिढ़ गए| वे सरल स्वभाव के व्यक्ति थे, उन्हें यह सब बिलकुल पसंद नहीं आया| "देख उत्तम, मेरे पास इस नौटंकी के लिए वक़्त नहीं है| तू यहाँ से चला जा|"  मगर उत्तम नहीं डिगा, "सेठ जी आप मेरे लिए भगवान हैं| मैंने अपना सबक सीख लिया है| आप मुझे सिर्फ एक और मौका दीजिये| जो भी काम देंगे वो करूंगा, जितना रोजी देंगे उतना चुपचाप ले लूँगा| सब बुरी आदतें छोड़ चुका हूँ, बस शराफत से 2 पैसे कमाना चाहता हूँ ताकि रोटी खा सकूँ|" भगवान का मन थोड़ा पिघल गया| सही राह पर आते व्यक्ति की मदद करना पुण्य का काम है| थोड़ी देर अनुनय विनय करने के उपरांत वे मान गए| "ठीक है, कल से सामान लाने ले जाने का काम कर| रोज का 200 दूंगा| अगर तूने शराब पी या कोई ऐसी वैसी हरकत की, तो मुझसे बुरा कोई न होगा|" "अपनी माँ की कसम  खा कर कहता हूँ सेठ जी, आपको शिकायत का एक भी मौका नहीं दूंगा| "

रात को भोजन पर धर्म-पत्नी को दिनेश जी ने पूरी घटना बताई| लेकिन उनके इस लोक कल्याणकारी कदम की प्रशंसा करने के बजाए पत्नी ने आपत्ति दर्ज की| "इंसान का मूल स्वभाव नहीं बदलता| मैं तो इस उत्तम को काम देने के पक्ष में नहीं हूँ|"

"अरे! तुम तो यों कहती हो जैसे दुनिया में आज तक किसी का हृदय-परिवर्तन हुआ ही नहीं| ऋषि वाल्मीकि भी ऋषि होने से पहले डाकू थे| गांधी जी ने भी बचपन में चोरी की थी| कोई मनुष्य गलती करे तो इसका ये मतलब नहीं की समाज उसे त्याग दे| आज मैं उसे नौकरी नहीं देता, तो फिर सब गलत धंधे में लग जाता| उसने लड़कपन में गलतियाँ की, लेकिन अब उसकी आवाज़ में मुझे सच्चाई सुनाई दी" पति का समाज सुधारक गुण प्रायः पत्नी को रास नहीं आता| इसके पीछे कुछ बड़े कारण हैं| एक तो पति के द्वारा लिए गए निर्णय तर्क-संगत नहीं होते, ऊपर से ऐसे उच्च-मूल्यों वाले लंबे-चौड़े भाषण का प्रहार भी पत्नि को ही सहना पड़ता है| सेठानी जी के लिए भी ये सब रोज़-मर्रा की बात थी, इसलिए आगे बहस करने की अपेक्षा भोजन कर के सो जाना उन्हें बेहतर विकल्प लगा|

1 वर्ष बीत गया| उत्तम अपने नाम के अनुरूप ही काम भी कर रहा था| उसे देख कर दिनेश जी को अपने ऊपर गर्व भी होता, संतुष्टि भी मिलती, प्रसन्नता भी होती| किसी को अवसर प्रदान कर उसका जीवन सही रास्ते  पर ले आना निस्संदेह पुण्य का काम है| इतनी निष्ठा और समर्पण देख कर सेठ जी ने उसे डिलिवरी के साथ साथ वसूली के काम पर भी लगा दिया| उत्तम भी प्रोमोट हो कर खुश हुआ| सेठ जी ने उसकी सैलरी बढ़ाने की बात की तो कहने लगा  "आपने मुझे इस लायक समझा यही मेरे लिए बहुत है सेठ जी| मुझे पैसों का लालच नहीं" यह सुन कर दिनेश सेठ ने उसकी सैलरी दोगुनी कर दी| अब उत्तम सामान के साथ साथ सेठ जी का पैसा भी संभालने लगा| लोगों के बीच में उसकी पहचान हो गयी| ऐसे ही और कई महीने बीत गए|

ठंडी का मौसम था और सेठ जी सुबह सुबह धूप सेंक रहे थे| तभी 4-6 पुलिस वालों की टोली उनके घर आ पहुंची| इंस्पेक्टर बोला, "दिनेश जी, आपको अरेस्ट करने आए हैं| हमारे साथ थाने चलिये| और प्लीज़ को-औपरेट कीजिये|" सेठ जी हकबका गए| "आपको कुछ गलतफहमी हुई होगी इंस्पेक्टर साहब| मैंने कौन सा जुर्म किया है?" "आप चरस-गाँजा का धंधा कर रहे हैं| चलिये पुलिस स्टेशन" तब तक वहाँ सेठानी जी भी आ गईं| "मैं फिर कह रहा हूँ इंस्पेक्टर साहब, आपको गलत फहमी हुई है| मेरा चरस गांजे से दूर दूर तक कोई लेना देना नहीं है|"

"अरे ये सब क्या हो रहा है?" सेठ जी की धर्म-पत्नी भय से काँपने लगीं और रोने लगीं|

पुलिस वाले टस से मस नहीं हुए| "आप अपना पक्ष पुलिस थाने में रखिए| आपके एजेंट को हमने पहले ही गिरफ्तार कर रखा है|"

"कौन एजेंट?"

"उत्तम सिंह| पूरे एरिया में चरस गाँजा सप्लाई करता है| आज उसे रंगे हाथों पकड़ा हमने| 4 डंडे पड़े तो बताया कि सब आपकी देख रेख में हो रहा है और वह सिर्फ आपका प्यादा है| आपकी शहर में इतनी इज्ज़त है, और आपकी असलियत ये है? अब जल्दी पुलिस स्टेशन चलिये"

दिनेश सेठ कुछ बोल नहीं पाये| उनकी आँखें नम हो गईं| वे चुपचाप पुलिस के साथ चल दिये| उनकी पत्नी उन्हे कोसने लगीं, फिर उत्तम को कोसने लगीं; फिर भगवान को कोसने लगीं, समाज को कोसने लगीं, मानवता को कोसने लगीं| जब थोड़ा संभल गईं, तो वकील को फोन किया| मामला संगीन था पर वकील भी बहुत काबिल था| 1 महीने हिरासत में रहने के बाद सेठ जी जमानत पर घर वापस आए| पर मुकदमा तो अभी कई साल चलेगा| 

4 comments: