"भाई-साहब, ज़रा खिसकिए!" कमल आवाज़ सुन कर चौंक गया| भारतीय रेलवे का यह अनकहा नियम है कि सीट आरक्षित होने के बाद भी आपको लोकल यात्रियों को जगह देनी पड़ेगी| सर्वमान्य नियम यह है कि 3 की सीट पर 5 लोग बैठेंगे| इसलिए इस उदार परंपरा के कारण कमल को ऍडजस्ट करना पड़ा| लेकिन उसका मन कहीं और ही था|| उसे सुनीति की चिंता थी| दो साल पहले दोनों ने प्रेम विवाह किया था| घर में बवाल मच गया था| दोनों के ही| भारतीय संस्कृति आपको जीवनसाथी चुनने का अधिकार नहीं प्रदान करती| शास्त्रों एवं पौराणिक कथाओं में प्रेम विवाह के अनगिनत उदाहरण मिलेंगे, किन्तु उन घटनाओं का प्रयोजन भक्ति भाव पैदा करना है| उनका अनुसरण करना स्वीकार्य नहीं है| कतई नहीं| कमल और सुनीति भी कोर्ट मैरिज करने के बाद 2 महीने तक अंडरग्राउंड ही रहे| दोस्तों से सहयोग मिला| यह सत्य है कि परम मित्रों की गिनती परिवार से अलग नहीं की जानी चाहिए| इन्हीं मित्रों ने दो महीने बाद दोनों परिवारों में सुलह कराया| सब सेटल हो जाने के बाद कमल और सुनीति को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई| भरा पूरा परिवार हो गया| घर वाले भी पुरानी बातें भूल गए|
पर मुसीबतों की सप्लाई पर रोक लगाना जीवन के स्वभाव के विरुद्ध है| सुनीति को लगातार पेट दर्द होने पर अस्पताल ले जाया गया| जाँच करने पर अल्सर की समस्या का पता चला| इसके लिए की जाने वाली सर्जरी पर 2 लाख का खर्च बताया गया| कमल को तो जैसे काटो तो खून नहीं| कहाँ से लाएगा 2 लाख रुपये? 13000 की मामूली सी तंख्वाह| 35000 रुपये तो अब तक वैसे ही खर्च हो गए थे| इतने में ही कमर टूट गयी थी| कोई पुश्तैनी ज़मीन भी नहीं थी बेचने को| गाड़ी के लिए लोन तो पहले से ले चुका था| उसी की किश्त पटाने के बाद कुछ बचता नहीं था| अब और लोन मिलना बहुत मुश्किल था| पर फिर भी एक बार ब्रांच मैनेजर से मिलना चाहता था| इसी के लिए उसने ट्रेन पकड़ी थी| कमल देवताओं को कोसना चाह रहा था| हर शनिवार व्रत रख कर निष्ठा से पूजा-पाठ करने का ऐसा फल उसे अपेक्षित नहीं था| परंतु घर में दी गयी शिक्षा के कारण ऊपरवाले को कोसने की हिम्मत उसमें नहीं हुई| उसका मन व्याकुल हो उठा| सोचने लगा किसी प्रकार से पैसे आ जाएँ| किडनी ही बेच दूँ| उसकी आँखों से अश्रु-धारा बह निकली| उसने सच्चे मन से प्रार्थना की, "हे भगवान! मुझ पर तरस खाओ| सुनीति को बचा लो| चाहो तो मेरे प्राण ले लो|" रोते रोते उसने अपना चेहरा ढँक लिया|
ज़रा संभलने पर उसने पानी पिया| अगले ही पल कमल को जोरदार झटका लगा| पूरा डिब्बा पलट गया| इससे पहले की किसी को कुछ समझ आता, डब्बा जल चुका था| धू-धू कर लपटें चढ़ रही थीं| दृश्य भयानक था| कुछ ही घंटों बाद टीवी पर खबर आई कि नक्सलियों ने पटरी पर बम लगा रखे थे| जिसकी वजह से रेल के 3 डब्बे स्वाहा हो गए| अंदर कोई ना बच सका| कोई भी नहीं| गृह मंत्री ने कड़े शब्दों में इस "कायरता पूर्ण" कृत्य की भर्त्स्ना की| इस चुनौती से निपटने के लिए सुरक्षाबलों की सक्षमता पर विश्वास जताया; और मृतकों के परिवार जनों को 5 लाख की राहत राशि 3 दिवस के भीतर उपलब्ध कराने का वचन दिया|
पर मुसीबतों की सप्लाई पर रोक लगाना जीवन के स्वभाव के विरुद्ध है| सुनीति को लगातार पेट दर्द होने पर अस्पताल ले जाया गया| जाँच करने पर अल्सर की समस्या का पता चला| इसके लिए की जाने वाली सर्जरी पर 2 लाख का खर्च बताया गया| कमल को तो जैसे काटो तो खून नहीं| कहाँ से लाएगा 2 लाख रुपये? 13000 की मामूली सी तंख्वाह| 35000 रुपये तो अब तक वैसे ही खर्च हो गए थे| इतने में ही कमर टूट गयी थी| कोई पुश्तैनी ज़मीन भी नहीं थी बेचने को| गाड़ी के लिए लोन तो पहले से ले चुका था| उसी की किश्त पटाने के बाद कुछ बचता नहीं था| अब और लोन मिलना बहुत मुश्किल था| पर फिर भी एक बार ब्रांच मैनेजर से मिलना चाहता था| इसी के लिए उसने ट्रेन पकड़ी थी| कमल देवताओं को कोसना चाह रहा था| हर शनिवार व्रत रख कर निष्ठा से पूजा-पाठ करने का ऐसा फल उसे अपेक्षित नहीं था| परंतु घर में दी गयी शिक्षा के कारण ऊपरवाले को कोसने की हिम्मत उसमें नहीं हुई| उसका मन व्याकुल हो उठा| सोचने लगा किसी प्रकार से पैसे आ जाएँ| किडनी ही बेच दूँ| उसकी आँखों से अश्रु-धारा बह निकली| उसने सच्चे मन से प्रार्थना की, "हे भगवान! मुझ पर तरस खाओ| सुनीति को बचा लो| चाहो तो मेरे प्राण ले लो|" रोते रोते उसने अपना चेहरा ढँक लिया|
ज़रा संभलने पर उसने पानी पिया| अगले ही पल कमल को जोरदार झटका लगा| पूरा डिब्बा पलट गया| इससे पहले की किसी को कुछ समझ आता, डब्बा जल चुका था| धू-धू कर लपटें चढ़ रही थीं| दृश्य भयानक था| कुछ ही घंटों बाद टीवी पर खबर आई कि नक्सलियों ने पटरी पर बम लगा रखे थे| जिसकी वजह से रेल के 3 डब्बे स्वाहा हो गए| अंदर कोई ना बच सका| कोई भी नहीं| गृह मंत्री ने कड़े शब्दों में इस "कायरता पूर्ण" कृत्य की भर्त्स्ना की| इस चुनौती से निपटने के लिए सुरक्षाबलों की सक्षमता पर विश्वास जताया; और मृतकों के परिवार जनों को 5 लाख की राहत राशि 3 दिवस के भीतर उपलब्ध कराने का वचन दिया|
Bahut hi marmik kahani hai
ReplyDeleteThank you Mam!
DeleteAjeeb hai acha hai.or Sacha bhi hai��
ReplyDeleteHahaha! Feelings mein confusion!
Deleteek acche lekhak ki raah par ho Abhinit ji :)
ReplyDeleteJi dhanyawaad devi!
ReplyDelete