Tuesday, 12 February 2019

बर्थडे केक

मेरी नींद भारी शोरगुल के कारण टूट गयी| कुछ क्रोध आया| रात को देरी से सोया था| आज मेरा जन्मदिन था, जिसके कारण रात के बारह बजे मेरे लिए जागना और उत्साहित रहना आवश्यक हो गया था| जन्मदिन पर पार्टी एनिमल बनना क्यों आवश्यक है, ये बात मुझे समझाने वाले को मैं स्वयं पार्टी देने  को तयार हूँ| पर सिर्फ  उत्साहित रहने से काम नहीं चलता; अपने मित्रों के खान पान का प्रबंध भी करना पड़ा|  इतना सब निपटाते हुए रात के 3 बज गए| ऐसे में जब 9 बजे सुबह शोरगुल से आप जाग उठें, तो क्रोध आना स्वाभाविक है|

मैंने खिड़की से झांक कर देखा तो नीलु आंटी और उनके बेटे में बहस हो रही थी| दोनों तेलुगू में संवाद कर रहे थे, इसलिए मैं कुछ खास समझ नहीं पा रहा था| लड़का गुस्से में था| दो दिन पहले भी पैसे को ले कर दोनों बहस कर रहे थे| नीलु आंटी के पति को बाईं तरफ से लकवा मार चुका था; इस कारण से वे कुछ काम नहीं कर सकते थे| नीलु आंटी हमारी बिल्डिंग के घरों में साफ सफाई कर के कुछ कमा लेती थी| बेटा ड्राइवर था| खुद कमाता था लेकिन जुए और लाटरी में सब उड़ा देता था| इसलिए बार बार अपनी माँ से पैसे मांगता था| इसी कारण से दोनों में बहस होती थी| आज भी शायद यही कारण था| वाद विवाद कुछ 10 मिनट और चला और लड़का बड़बड़ाता हुआ चले गया| उसकी माँ गुस्से में नहीं थी, शायद दुखी थी| मेरे लिए यह समझ पाना मुश्किल था कि नीलु आंटी उस वक़्त क्या सोच रही थी| शायद हर भाव की तरह क्रोध भी एक सीमा के बाद बेअसर हो जाता है| शायद आप कुछ समय बाद क्रोध से भी ऊब जाते हैं| केवल दुख ही भावनाओं का राजा है| आप चाहें (या कभी कभी ना भी चाहें) तो भी दुख से ऊब नहीं सकते| दुख को बहुत शक्तिशाली, सुनियोजित और अनुशासित परिश्रम से भगाना पड़ता है| ज़रा अपने आस पास नज़र दौड़ा के देख लीजिये, जीवन पर्यंत दुखी रहने वालों के भी उदाहरण मिल जाएंगे| दुख से ज़्यादा निष्ठावान साथी मिलना कठिन है|

लगभग 2 घंटे बाद नीलु आंटी मेरे फ्लैट में आयीं और साफ सफाई में लग गयी| यदि रात को हमने केक का 67.59% हिस्सा पोतने और एक दूसरे पर फेकने पर बर्बाद नहीं किया होता, तो इस वक़्त घर कुछ ज़्यादा साफ होता और केक का इससे बड़ा टुकड़ा बचा होता| मानव समाज को चाहिए कि केक खाने के बजाए पोतने वालों को बिरादरी से बर्खास्त कर दें| इनके दंड का भी यह प्रावधान हो कि इन्हें कम से कम एक वर्ष सोमालिया के कुख्यात इलाकों में बिताना होगा| बहरहाल, पहले मैंने सोचा कि ये छोटा सा केक का टुकड़ा आंटी को दूँ भी  या नहीं| लेकिन दान की गयी बछिया का दाँत नहीं देखा जाता| यही विचार कर मैंने वही अति लघु टुकड़ा आंटी की तरफ बढ़ाया| नीलु आंटी हिन्दी नहीं समझती थी| मैंने इशारे से समझाया, "आंटी ...... मैं.......... बर्थडे......आज"| आंटी खुश हो गयी| ज़ाहिर है, मैं एक्सप्लेन बहुत अच्छा करता हूँ| उन्होने तेलुगू में कुछ कहा, जो शायद "हैप्पी बर्थडे" का तेलुगू रूपान्तरण था| मैं भी जवाब में मुस्कुरा दिया| मुस्कुराहट हर भाषा में वैसी ही होती है| तो मैंने कहा "केक खाइये"| उन्होने मुझे रुकने का इशारा किया| मैं सोच रहा था कि इतना सा केक खाने के पहले उन्हें कौन सी रस्म पूरी करनी है| पर आंटी एक छोटा सा कागज का टुकड़ा ले कर आयीं और उसमे केक रख कर वापस अपने घर को चल दी| केक इतना बड़ा था ही नहीं कि उसे बांटा जा सके| मैं मुस्कुराया और दरवाज़ा बंद कर वापस सोने को चल दिया|

8 comments:

  1. अच्छा संदेश कहानी में दिया गया है कहानी अच्छी और सच्ची लगी

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    1. धन्यवाद! कहानी सत्य घटना पर आधारित है| :-)

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  2. अच्छी लघु कथा ☺

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  3. धन्यवाद श्रुति जी! :-)

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