अरविन्द केजरीवाल के इस्तीफा देने से निराशा हुई| क्या बात है सर, अबकि बार जनता से SMS कर के अपनी राय बताने को नहीं कहा आपने? आपकी समस्या देख कर महाभारत में अर्जुन की याद आ जाती है| जब चक्रव्यूह में अभिमन्यु की हत्या का मुख्य कारण जयद्रथ पाया गया, तब अर्जुन ने प्रण लिया कि अगले दिन सूर्यास्त से पहले यदि उसने जयद्रथ का वध नहीं किया तो वह आत्म-दाह कर लेगा...अगले दिन युद्ध में दिन चढ़ता देख अर्जुन चिंतित हो उठे, तब श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा, "पार्थ, यही तुम्हारी समस्या है...तुमने जयद्रथ का वध करने के प्रण में सूर्यास्त की शर्त रख दी है...अब तुम्हारा ध्यान जयद्रथ से ज्यादा सूर्यास्त पर है" हमारे प्रभु केजरीवाल की भी यही समस्या है| "बच्चों की कसम खाता हूँ किसी को ना समर्थन दूँगा, ना किसी से समर्थन लूँगा", "VIP सेक्युरिटी नहीं लूँगा", "बड़ा घर नहीं लूँगा"...."२० दिन के भीतर जन-लोकपाल ला देंगे"...श्री केजरीवाल, जब आप मुख्य-मंत्री बने, तब ये सारी प्रतिज्ञाएं भी आपकी पीठ पर सवार हो कर साथ आयीं| नतीजा यह हुआ की आपके किसी प्रैक्टिकल कदम पर भी इन प्रतिज्ञाओं का वास्ता दिया जाने लगा...जिसकी शुरुआत कांग्रेस के बाहरी समर्थन से हुई और अंत हुआ आपके इस्तीफे से....हुजूर, आपको जनता ने सिर्फ़ लोकपाल बनाने के लिए समर्थन नहीं दिया था, और भी कई मुद्दे थे....आपको लगता है लोकतंत्र में विपक्ष की कोई भूमिका नहीं होती?....मै आपको पूरे विश्वास के साथ कहता हूँ कि आप पूर्ण बहुमत से भी जीत के आ गए तो भी परेशानियों का अम्बार लगा रहेगा.....तब भी रिजाइन कर देंगे? माई-बाप, हमको राम-राज्य नहीं चाहिए, बस इस देश में सभी को गरिमा (dignity) और अवसर (opportunity) प्राप्त हों जायें...बाकी सब अपने आप हो जायेगा..पर ऐसा होने के लिए लड़ना ज़रुरी है....काम करना ज़रुरी है...युद्ध-भूमि में डटे रहना ज़रुरी है...धरना देना और रिजाइन करना इसका हल नहीं...जाइए ज़रा "राज-नीति" सीख कर आइये...
Awesome !
ReplyDeleteThank you :)
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