मनुप्रसाद
का जन्म
अत्यंत
गरीब
परिवार
में
हुआ
था| लेकिन फिर भी मनुप्रसाद मन से गरीब नहीं था| इसका यह मतलब नहीं है कि वह कोई महात्मा था जो लोगों की मदद को तैयार रहता था या अपने मुहल्ले में अपने विशाल हृदय होने के कारण बहुत लोकप्रिय था| इसका मतलब यह है कि वह अमीर बनने के सपने देखता रहता था| “पोवर्टी इज़ ए स्टेट औफ़ माइंड” वाली विचारधारा से वह इत्तेफाक रखता था| धनाड्य लोगों से हमेशा प्रेरित होता| वे लोग कैसे बात करते हैं, क्या खाते हैं, क्या पहनते हैं, कौन सी गाड़ी चलाते हैं इत्यादि| एक बड़े होटल में बैरा होने के नाते अक्सर उसे ऐसे लोग दिखते जिन्होंने प्रचुर मात्रा में धनराशि इकट्ठा कर रखी है| उनके आचार व्यवहार पर मनुप्रसाद बराबर नज़र रखता और आशा करता कि किसी दिन शहर के संभ्रांत परिवारों में उसका परिवार भी शामिल होगा| बस समस्या एक ही थी| मनुप्रसाद ज़्यादा मेहनत करने से परहेज करता था| वह स्वभाव से बहुत लापरवाह एवं आलसी था| अक्सर उसका मैनेजर उसे खरी खोटी सुनाता| उसके लचर रवैये से उन्हीं ग्राहकों को असुविधा भी होती थी जिनका अनुसरण वह करना चाहता था| कुल मिला कर मनुप्रसाद आधुनिक युग का मुंगेरीलाल था| आखिर इतने बड़े होटल में ऐसा कब तक चलता| एक दिन मैनेजर और मनुप्रसाद में बहुत भीषण विवाद हुआ और फलस्वरूप उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया गया| मनुप्रसाद बहुत आहत हुआ| पर उसने मन में ठान लिया कि एक दिन इतना पैसा कमाएगा कि यही होटल वाले उसके लिए रेड कार्पेट बिछाएंगे|
मनुप्रसाद ने निर्णय तो ले लिया, किन्तु इसके क्रियान्वयन की कोई योजना उसके पास नहीं थी| पर उसका मन अब इस शहर में नहीं लग रहा था| उसने तय किया कि दूसरे शहर जा कर अपनी किस्मत आज़माएगा| उसने ज़रूरी सामान से अपना सूटकेस भरा कुछ पैसे रखे और माँ बाप के पैर छू कर बस स्टैंड चल दिया| उसके एक मित्र के मामा ने 20 साल पहले पास के एक शहर में नाई की दुकान खोली थी और अब वे चार दुकान चला रहे थे| काफी सम्पन्न परिवार हो चला था| मनुप्रसाद ने तय किया कि उसी शहर में वह भी अपनी शुरुआत करेगा| “मामा जी” से अनुनय विनय करने पर उन्होंने मनुप्रसाद को अपनी पहचान की एक विधवा सेठानी के घर नौकरी पर लगा दिया| काम साधारण था लेकिन मेहनत वाला था- साफ सफाई, बाजार जा कर सब्जी-भाजी खरीदना, मेहमानों का स्वागत सत्कार आदि| मनुप्रसाद इतनी मेहनत करने का आदि नहीं था, लेकिन खाली जेब आपके स्वभाव से कोई सरोकार नहीं रखती| उसके सामने तो अच्छे अच्छे फन्ने खाँ सर झुका लेते हैं| बस उसे ये तसल्ली थी कि पिछले मैनेजर की तरह मैडम जी झिक झिक नहीं करती थी| बात बात पर ताना नहीं मारती थी| नुक्ता चीनी भी नहीं करती थी| वह मनुप्रसाद के काम से बेहद खुश थी| कभी कभार मैडम जी उससे घंटों बात करती| बचपन में ऐसा हुआ करता था, उन्होंने नृत्य कला में जगह जगह पर अवार्ड जीते थे| पति के गुज़र जाने का दुख भी प्रकट करती| मनुप्रसाद और कुछ हो न हो पर एक उच्च श्रेणी का श्रोता था| लगातार सुनते जाता, सवाल पूछता, प्रसन्नता, विस्मय, सांत्वना – सारे भावों का इंद्रधनुष प्रकट करता| इसी कारण से सारे कर्मचारियों में से सबसे ज़्यादा सम्मान और प्रेम मनुप्रसाद को मिलता| विश्वास कीजिये, सम्मान और महत्व कई बार पैसों से ज़्यादा बड़े प्रेरक साबित होते हैं|
मैडम जी को पता भी नहीं चला कि कब उनके मन में मनुप्रसाद के लिए प्रेम भाव उत्पन्न हो गया| मनुप्रसाद भी यह बात भांप गया था| देखते ही देखते कुछ महीनों में ही उसने मैडम जी को परिणय सूत्र में बांध लिया| और अब मनुप्रसाद भी धनाड्य व्यक्तियों की श्रेणी में शामिल हो गया| लेकिन उसकी सभी अपेक्षाएँ मिट्टी में मिल गईं|
आस पड़ोस के लोगों ने मनुप्रसाद को मैडम के घर में काम करते देखा था, अब वे लोग उसे अपने बराबर का व्यक्ति नहीं मान पा रहे थे|
“लौटरी लगने से पैसे आ जाते हैं पर क्लास तो नहीं आ जाएगा” एक ने कहा|
“उस दिन रिसेप्शन में हाथ से खाना खाने लगा| उसे तो चम्मच छुरी इस्तेमाल करने तक की तमीज़ नहीं है|” दूसरे ने कहा|
“माथुर साहब अपने इक्विटी ईन्वेस्ट्मेंट्स पर कुछ बता रहे थे, तो घड़ी घड़ी सवाल कर रहा था| ये क्या है, वो क्या है| इस दसवीं फेल को शेयर मार्केट क्या खाक समझ आएगा?” तीसरा बोल पड़ा|
कुल मिला कर मनुप्रसाद समझ गया कि असली इज्ज़त के लिए पैसे बनाना ज़रूरी है| उसने फिल्मों, कहानियों और टीवी धरवाहिकों से बिजनेस करने की प्रेरणा ली| लेकिन उसकी समस्या भी वही थी जो आजकल के स्टार्ट अप खोलने के सपने देखने वाले लड़कों की होती है| जो चाय की चुस्की लेते हुए कम से कम दो तीन सौ आइडियास को डिस्कस करते हैं और फिर “व्यावहारिक” कारणों के चलते हर एक आइडिया को नकार भी देते हैं| हालांकि मनुप्रसाद के साथ एक बात अलग थी| उसके पास असल में ढेर सारी पूंजी थी
जो उन लड़कों के पास नहीं रहती|
मनुप्रसाद ने एक तरकीब सोची| उसने अपने पड़ोसियों से ही सलाह लेने का निर्णय लिया| इसी बहाने उनसे मित्रता भी बढ़ेगी और साथ साथ मनुप्रसाद की सामाजिक प्रतिष्ठा भी| एक पंथ दो काज| उसे यह अवश्य पता था की उसके पड़ोसी उसे पसंद नहीं करते हैं, किन्तु उसे यह आशंका नहीं थी कि उसके आस पड़ोस के धनवान लोग उससे घृणा करते हैं| तो वह चल पड़ा| मनुप्रसाद के पड़ोसी इस बात से बहुत प्रसन्न हुए| अब उन्होंने
इस “मूर्ख” को सबक सीखने का निर्णय लिया| हम जिस शहर की बात कर रहे हैं, वह गरम स्थल था| यहाँ एसी की डिमांड साल भर रहती थी| पड़ोसियों से परामर्श कर मनुप्रसाद आश्वस्त हो गया कि देश के दूसरे छोर पर बसे माधवपुरा क्षेत्र में एसी की बहुत मांग रहेगी| अतः उसने इसी व्यापार में अपनी सारी पूंजी लगाने कि ठान ली| मनुप्रसाद का भूगोल इतना अच्छा नहीं था| उसे नहीं पता था कि माधवपुरा क्षेत्र पहाड़ी इलाके में था और वहाँ एसी बेचना लगभग असंभव था| कई सैकड़ो एसी ले के वह चल पड़ा माधवपुरा क्षेत्र| अब
सच्चाई का सामना करते हुए उसे झटका लगा| उसके लिए यह विश्वास कर पाना मुश्किल था कि उसके टॉप क्वालिटी एसी की यहाँ कोई मांग नहीं थी| माधवपुरा के ही एक बार में मदिरापान करते हुए उसकी भेंट एक व्यापारी से हुई| बातों बातों में पता चला कि इस व्यापारी को सरकार द्वारा जगह जगह पर इन्टरनेट सर्वर स्थापित करने का ठेका मिला हुआ था, जिसके लिए उसे ढेर सारे एसी की आवश्यकता थी| देश के डिजिटलीकरण के इरादे से सरकार छोटे से छोटे गाँव, कस्बे को भी इन्टरनेट के माध्यम से जोड़ना छह रही थी, जिसके कारण ऐसे अनुबंध जारी किए जा रहे थे| पर आस पास ठंडे इलाके होने की वजह से एसी की सप्लाई दूर दूर से होती थी| उसने जिस कंपनी से अनुबंध किया था अब वही डीजल की बढ़ती कीमतों का हवाला दे कर दाम मनमाने ढंग से बढ़ा रही थी| इन कारणों से वह व्यापारी अपना काम समय पर पूरा नहीं कर पा रहा था| मनुप्रसाद के तो भाग खुल गए| अंधा क्या चाहता? दो आँखें| उसने तत्काल अपना ऑफर पेश किया, और डील हो गयी| इसके बाद उस व्यापारी ने मनुप्रसाद से ही एसी खरीदने का निर्णय लिया| मधुशाला में हुई मित्रता का प्रभाव कई बार बहुत गहरा होता है| मनुप्रसाद का व्यापार अखिल भारतीय स्तर पर पहुँच गया| ऐसी नौबत आ गयी कि मनुप्रसाद के लिए मांग के मुताबिक सप्लाइ कर पाना मुश्किल हो गया| पर उसने इस डील से ढेर सारा पैसा कमा लिया|
मनुप्रसाद के पड़ोसी जल भुन के रह गए| जब मनुप्रसाद स्वादिष्ट मिष्ठान ले कर उनके घर धन्यवाद करने आया, तो ऐसा लगा जैसे उसने उनके जख्म कुरेद दिये| प्रारब्ध किसी और पर उदारता दिखाये तो वह अनुचित ही लगता है| उसके पड़ोसियों ने अब उसे व्यापार बढ़ाने का “सुझाव” दिया| मनुप्रसाद को भोला कहिए या बेवकूफ़, वह फिर अपने पड़ोसियों के झांसे में आ गया|
अबकी बार व्यापार और वृहद स्तर पर करने का सुझाव दिया गया| काम था, कोयले की
आपूर्ति| अपने पड़ोसियों के सुझाव पर मनुप्रसाद ने कई टन कोयला कोडमी शहर में बेचने का निर्णय लिया| भूगोल कमजोर होने की वजह से वह इस बात से अनभिज्ञ था कोडमी एक घोषित औद्यिगिक क्षेत्र था जहां कोयले की कई खदानें थीं| यह निश्चित था कि मनुप्रसाद द्वारा भेजा गया कोयला गोदाम में अनंत काल तक पड़ा रहेगा लेकिन बिकेगा नहीं| मनुप्रसाद के हितैषियों की खुशी छुपाए नहीं छुप रही थी| पर नियति को कुछ और ही स्वीकार्य था|
कोडमी में वेतन के विवाद को ले कर वहाँ के मजदूरों ने हड़ताल कर दी
थी| अपनी जान जोखिम में डाल कर काम करने वाले मजदूर बेहतर पारिश्रमिक की अपेक्षा रखते थे| “मालिकों” को यह मांग अनुचित लगी| अर्थव्यवस्था में आई मंदी के चलते वे पहले ही बढ़ती लागत से परेशान थे| ट्रेड यूनियन के नेताओं से बहस हो गयी और फलस्वरूप मजदूरों ने हड़ताल की घोषणा कर दी| ऐसे में जैसे ही मनुप्रसाद के कोयले की खबर लगी, सारे
ठेकेदार तुरंत उसके पास पहुंचे और बढ़े हुए दामों पर खरीदने के लिए बोली लगाने लगे| उल्टे बाँस बरेली को पहुंचाना भी मनुप्रसाद के लिए लाभप्रद साबित हुआ| भाग्य ने एक बार फिर मनुप्रसाद पर धनवर्षा की| और उसके पड़ोसी? उन्हें तो जैसे साँप सूंघ गया| उनके लिए विश्वास कर पाना मुश्किल था कि कोई इतना भाग्यशाली भी हो सकता है| वे
मन मसोस के रह गए|
मनुप्रसाद का कद अब काफी बढ़ चुका था| इतना पैसा और रुतबा होने के कारण उत्साहित चापलूसों का एक दल उसके इर्द गिर्द घूमने लग गया था| इस समूह की उपस्थिती इस बात की परिचायक थी कि मनुप्रसाद की गिनती अब धनाड्य लोगों में की जा सकती है| इनमें से एक पिट्ठू ने मनुप्रसाद को अपने जीवन के अनुभवों पर एक वीडियो बनाने की प्रेरणा दे डाली| सोशल
मीडिया पर ऐसा कंटेन्ट बहुत लोकप्रिय हो रहा था| और
वैसे भी, आखिर मनुप्रसाद के अनुभव से समाज कल्याण होना भी तो ज़रूरी था| देख जाए तो अब मनुप्रसाद ने श्रीमान मेसलो के सोपानिकी के अंतिम पग पर कदम रख दिया था| बस फिर क्या था? मनुप्रसाद ने निर्णय लिया कि वह एक गीत के माध्यम से अपने अनुभव साझा करेगा| हाल
ही में
जीवन में मिली अभूतपूर्व सफलता ने उसका आत्म विश्वास बहुत ऊंचा कर दिया था| ऐसा कुछ नहीं था जो वह नहीं कर सकता था| वह व्यापार कर सकता था, वह गा सकता था, वह गीत और संगीत रचना भी कर सकता था, और इस माध्यम से समाज को जीवन दर्शन भी सिखा सकता था|
म्यूज़िक
एल्बम
पर पुरजोर
मेहनत
की गयी| मनुप्रसाद
ने दिन
रात
एक कर
दिया| न
खाने का होश न सोने का| कभी गायन, कभी संगीत तो कभी गीत के बोल| हर एक पहलू पर उसने कड़ी
मेहनत की और एक वीडियो बना ही डाली| पर
अब कौवा
हंस
तो नहीं
बन सकता| गीत
के बोल, उसपर
बैठाया
हुआ
संगीत
और खुद
मनुप्रसाद
की आवाज़
एक ऐसा
मिश्रण
था जिसका
प्रयोग किसी
को मानसिक
वेदना
देने
के लिए
किया
जा सकता
था| पर
यह बात
मनुप्रसाद
को बताता
कौन? सबने
भरपूर
तारीफ
की| चेले
चपाटे
प्रशंसा
करते
नहीं
थकते
थे| मनुप्रसाद
ने अपने
हितैषी
पड़ोसियों
को भी
यह वीडियो
दिखाया| आखिर
उन्हीं
के सुझावों
की बदौलत
आज वह
इस स्थिति
में
था| पड़ोसियों
की हँसी
थम नहीं
रही
थी| पर
मनुप्रसाद
को सबक
सिखाने
का यह
एक और सुनहरा
अवसर उनके हाथ आ गया
था| उन्होनें
प्रतिभाओं
के धनी
मनुप्रसाद
को यह
प्रतिभा
विश्व
के सामने
प्रस्तुत
करने
के लिए
प्रेरित
किया| “यह
वीडियो
तो यूट्यूब
पर जाना
ही चाहिए|” और
अगले
चंद
मिनटों
में
वह वीडियो
यूट्यूब
के पटल
पर था| पड़ोसियों
ने लोगों
को पकड़
पकड़
कर वह
वीडियो
दिखाई| व्हाट्सएप, इन्स्टाग्राम
और फेसबुक
पर शेयरिंग
का बंदरबाट
चलने
लगा| लोग
खूब
मज़े
लेते, मनुप्रसाद
को हँसी का पात्र बनाते और
फिर
दूसरों
को दिखाते| इसका
परिणाम
यह हुआ
कि मनुप्रसाद
के वीडियो
पर व्यूज विद्युत गति से बढ्ने लगे| व्यूज के साथ आए विज्ञापन और विज्ञापन के साथ आई ढेर सारी धनराशि| पड़ोसियों ने संभवतः अब अनुभव किया कि “क्रिंज पॉप” का दौर आ चुका है| सेलफ़ी, घंटी, कट्टा, इस्पाइडरमैन जैसे विषयों पर बेहद निरर्थक
और ऊटपटाँग
गीत
सोशल
मीडिया
पर पहले
ही अपना
दंभ
दिखा
चुके
थे, और
पैसे
भी कमा
चुके
थे| पड़ोसी
यह गुना भाग करने में असफल रहे और जाने अनजाने उन्होंने इतना प्रचार और इतना धन मनुप्रसाद
के सामने थाली में सजाकर रख दिया| मनुप्रसाद ने इस खुशी में एक बड़ी पार्टी राखी और सभी पड़ोसियों को इसका न्योता भेजा| न्योते में उनकी स्व-रचित कविता की 2 पंक्तियाँ भी उपस्थित थीं
“आप सब को धन्यवाद सोणियों फेमस, हो गया यूट्यूब विडियो | शाम को परिवार अंकल आंटी बच्चे, आएंगे जब गाना हमारा
सुनेंगे सब ”
नोट: यह कथा टिमोथी
डेक्सटर के जीवन से प्रेरित है
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