“टिटिकाका शॉपिंग आपके लिए लाए
हैं टू डे डिलिवरी| जी हाँ, अपने अकाउंट को अपग्रेड करें टिटिकाका प्रीमियम में और
पाएँ सारे और्डर्स पर केवल दो दिन में डिलिवरी की विशेष सेवा| ये सब सिर्फ
999 रुपये प्रति वर्ष की मामूली दर पर|”
नकुल यह विज्ञापन देख रहा था| वह टिटिकाका शॉपिंग के एक शिप्पिंग वेयरहाउस
में काम करता था| वह अपनी शिफ्ट के लिए ही तैयार हो रहा था| टिटिकाका अपनी अद्भुत
एवं उत्कृष्ट ग्राहक सेवा के लिए जानी जाती है| फोर जी के जमाने की जनता अधीर हो
उठी है| मूवी डाऊनलोड से लेकर कार सर्विसिंग तक और रेस्तरां में भोजन आने से लेकर
मंदिर में भगवान के दर्शन तक, हम वेट नहीं करना चाहते| ऐसा प्रतीत होता है कि हमारी
पीढ़ी ने अपने चरित्र से धैर्य और प्रतीक्षा का परित्याग कर दिया है| यह परित्याग
ऑनलाइन शॉपिंग करते वक़्त विशेष तौर पर उभर कर सामने आता है| यह बात टिटिकाका शॉपिंग
भली भांति जानती थी| इसी गुण का व्यावसायिक लाभ उठाने के लिए उन्होंने यह
स्कीम लॉंच की थी|
वेयरहाउस पहुँचते ही सुपरवाइसर श्री मनोहर सतपुते की कृपा नकुल पर बरस पड़ी| इन्हें कई वर्षों
का अनुभव था और ये अपने अंदर काम करने वाले कर्मचारियों को “ठीक” करने का विशेष
गुण ले कर चलते थे| सुपरवाइसर साहब ने दो टूक शब्दों में अपना असंतोष व्यक्त
किया| पिछले दिन नकुल को चक्कर आ गया था| इस वजह से उसका
ब्रेक आधे घंटे से कुछ अधिक हो गया| आज इस बात के लिए सुपरवाइसर
से खरी खोटी सुनना अपेक्षित था| अब इस नयी प्रीमियम सदस्यता वाली स्कीम के साथ काम का
बोझ बहुत ज़्यादा बढ़ने वाला था| ऐसी स्थिति में, यदि सुपरवाइसर
समुदाय अपने कर्मचारियों की प्रतिष्ठा एवं सम्मान पर आघात लगा कर उनका मनोबल ना
गिराए, तो समझ लीजिये अपने मूल कर्तव्यों के साथ घोर अन्याय
करे| नकुल इन सब का आदि था| उसके अन्य
सहकर्मी भी इसके आदि थे| सो वह अपने काम में लग गया|
टिटिकाका बहुत बड़ी कंपनी है| इस कारण से उसका काम कई वृहद
आकार के गोदामों से चलता है| अपने स्थान से कैंटीन जाने में नकुल को लगभग 10 मिनट
लगता है| आधे घंटे के ब्रेक में 20 मिनट केवल आने जाने में निकल
जाते हैं| 10 मिनट में फटाफट खा लेता है| अन्य दफ़्तरों की
तरह चैन से 2 निवाले खाते हुए अपने सहकर्मियों के साथ सुख दुख बाँटने का सौभाग्य
नकुल को प्राप्त नहीं है|
“अबे अभी 2 मिनट बाकी हैं| खाना तो पूरा खतम कर” संजय ने कहा|
“टॉइलेट से हो आता हूँ| वैसे भी पेट भर ही गया है| आज फिर देर हुई
तो सतपुते मुझे कच्चा चबा जाएगा| साला क्या नौकरी है| मूत्र विसर्जन
के लिए भी प्लानिंग करनी पड़ती है|” नकुल कहता हुआ निकल गया|
संजय अपने काम में लगा हुआ था कि तभी मनोहर सतपुते क्रोधित मुद्रा में वहाँ
पहुंचा| “नकुल कहाँ है? इस आदमी की
मनमानी कुछ ज़्यादा ही बढ़ गयी है| इतने सारे और्डर्स आ गए हैं| पैकिंग नहीं
करेंगे तो काम कहाँ से पूरा होगा?”
“सर नकुल तो मेरे साथ ही खाना खा रहा था| फिर बाथरूम चला
गया|”
“तो कहाँ है अब? मर गया क्या बाथरूम में?” सतपुते साहब
गुस्से से बेकाबू हो रहे थे|
“सतपुते सर|” एक असिस्टेंट दौड़ते हुए आया|
“हाँ क्या हुआ?” सतपुते जी चिढ़ते हुए बोले|
“सर, एक आदमी बाथरूम में बेहोश हो गया है| ये उसकी जेब से
आईडी मिली, नकुल वर्मा|”
तत्काल एक अंबुलेंस बुलाई गयी| सतपुते साहब ने संजय को नकुल
के साथ जाने की अनुमति दे दी| अब यह नयी मुसीबत| एक तो वैसे ही
इतने और्डर्स हैं कि दो दिन में डेलीवरी देना असंभव दिख रहा है| ऊपर से ये आजकल
के कमजोर लड़के| काम मैनेज करें भी तो कैसे? नकुल और संजय का
काम 4 और लोगों में बराबर बाँट दिया गया| आज का दिन सबके लिए मुसीबत बन
के आया| ऊपर से सतपुते साहब का फोन हर कुछ घंटों में बजता था| रीज़नल क्षेत्रीय
प्रबन्धक इस बात को लेकर बहुत उत्साहित थे कि 2 दिन की डिलिवरी से उनके क्षेत्र का
सेल्स बहुत बढ्ने वाला था| वे पल पल सुपरवाइसर से खबर लेते रहते थे| “स्टेटस क्या है? आज कितनी पैकिंग
बाकी है? इसमे देरी क्यूँ हो रही है? तुम्हारा काम
बहुत स्लो है|” इस सब का उत्तर देते देते सतपुते जी के पसीने छूट जाते| “आखिर ऊपरवाले
मुझे मशीन समझते हैं क्या? कर तो रहा हूँ जितना हो रहा है| नीचे का स्टाफ
ही निकम्मा मिला है तो क्या कर सकता हूँ|” इसी चिंता के बीच उनका फोन
एक और बार बजता है|
“अरे ये आदमी मुझे चैन से जीने नहीं देगा|”
पर ये फोन संजय का था|
“सर नकुल की डेथ हो गयी है|”
“क्या?”
सतपुते साहब को काटो तो खून नहीं| उन्होंने फिर से पूछा, “क्या हुआ नकुल
को?”
“सर नकुल की डेथ हो गयी है|” संजय ने दोबारा वही उत्तर
दिया|
सतपुते जी इतनी बढ़ी घटना पर प्रतिक्रिया नहीं दे पा रहे थे| वे चुपचाप अपनी
कुर्सी पर बैठ गए| सामने पानी की बोतल रखी थी| पर उनका हाथ उस
बोतल की तरफ नहीं बढ़ रहा था| उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए| काफी देर तक उसी
मुद्रा में बैठे रहे| व्याग्रता से उबरने के बाद उन्होंने अपने क्षेत्रीय
प्रबन्धक को कॉल किया|
“सर यहाँ एक लड़का मर गया”
“अरे! कैसे मर गया? गोदाम में कुछ एक्सीडेंट हुआ क्या?” क्षेत्रीय प्रबन्धक
महोदय की वाणी में चिंता दिखी| औद्योगिक दुर्घटना कभी कभी नौकरी तक ले जाती है|
“नहीं सर, बेहोश हो गया था| अस्पताल ले कर
गए तो वहाँ डेथ हो गयी|”
“अच्छा| तो बॉडी अभी वहीं है या ले आए?” प्रबन्धक जी को
कुछ सुकून मिला|
“अभी तो वहीं है सर| क्या करूँ अब?” सतपुते जी की गंभीरता अब भी
बनी हुई थी|
दोनों ने उसके घरवालों को सूचना देने का निर्णय लिया|
<तीन दिन बाद>
“सर, सर...आपके एक कर्मचारी नकुल वर्मा की मृत्यु का कारण एक्सौशन
बताया जा रहा है| क्या आप मानेंगे कि टिटिकाका अपने कर्मचारियों का शोषण
कर रही है? इस हद तक कि उन्हें अपनी जान गवानी पड़ रही है?” पत्रकार ने
सवाल दागा
“देखिये ऐसी बात नहीं है| टिटिकाका एक जिम्मेदार संस्था है| हम अपने
कर्मचारियों को सारी मूलभूत सुविधाएं प्रदान करते हैं| उनके खान-पान, शौचालय से ले कर
हर चीज़|” क्षेत्रीय प्रबन्धक ने गंभीरता से कहा|
“सर पर नकुल के माँ-बाप ने तो यही आरोप लगाया है कि उनका बेटा शिफ्ट के वक़्त
चैन से खाना भी नहीं खा सकता था| साथ ही उस गोदाम के बाकी सारे कर्मचारी हड़ताल पर हैं| आप इन आरोपों को
सीधे सीधे नकार नहीं सकते सर|”
“हम अपने वर्कर्स से संपर्क में हैं| आप चिंता मत
करिए, सब जल्द ही सुलझ जाएगा|”
“सर पर आपको नहीं लगता कि इतने भारी काम के लिए आप अपने वर्कर्स को बहुत कम
वेतन देते हैं?” तीसरा सवाल
“आपको मैं बता दूँ कि सरकार के मिनिमम वेज से हम दोगुनी सैलरी देते हैं| कम वेतन का आरोप
तो सरासर गलत है|” क्षेत्रीय प्रबन्धक की आवाज़ में आत्म विश्वास था|
“फिर भी सर, अगर काम करते करते जान चली जाए तो क्या फायदा? हमने वर्कर्स से
संपर्क किया तो उन्होंने हमें बताया कि टिटिकाका की नयी स्कीम टू डे डिलिवरी की
वजह से उन पर प्रेशर और बढ़ गया है और वे नहीं मानते कि इस स्कीम को आगे जारी रखना
चाहिए| क्या टिटिकाका टू डे स्कीम बंद कर देगी?”
“आप लोग बहुत जल्दबाज़ी में निर्णय ले रहे हैं| टू डे स्कीम
हमारे कस्टमर्स के लिए हमारी सौगात है| हम अपने कस्टमर्स को
सर्वश्रेष्ठ सेवाएँ देने के लिए कटिबद्ध हैं| टिटिकाका के
कस्टमर्स बेस्ट डीज़र्व करते हैं|”
“पर वर्कर्स का क्या सर?”
“मैं आप सब को न्योता देता हूँ हमारी नयी फेसिलिटी देखने के लिए| हमने रोबॉट्स भी
उपयोग करने का निर्णय लिया है, इससे हमारे वर्कर्स का वर्कलोड कम होगा| साथ ही हम अपने
वर्कर्स की सुरक्षा का भी हमेशा ध्यान रखते हैं| एक इंसिडेंट से
आप हमारी पूरी व्यवस्था पर सवाल नहीं उठा सकते| आप निश्चिंत रहें| हमारे वर्कर्स
सेफ और खुश भी रहेंगे, हड़ताल भी खत्म होगी, और हमारे
ग्राहकों को 2 दिन में डिलिवरी भी मिलेगी| वी आर कॉन्फिडेंट!”
कुछ देर बाद प्रेस कोन्फ्रेंस समाप्त हो गयी| सब अपने अपने
गंतव्य पर चले गए| 2 महीने भी बीत गए|
नकुल की माँ अपने आँगन में बैठी शून्य को निहार रही थी| सहसा पड़ोस में
होते कोलाहल की तरफ उनका ध्यान गया| एक लड़की ज़ोर ज़ोर से चीख रही
थी|
“क्या मतलब है हज़ार रुपये देकर ये टू डे डिलिवरी का सब्स्क्रिप्शन लेने का? लाते तो तुम लोग
तीसरे दिन ही हो?” लड़की के लिए ऑर्डर एक दिन देरी से आना एक अक्षम्य
अपराध था| शायद इस पीढ़ी की मूलभूत आवश्यकताओं की परिभाषा बदल चुकी
है|
“सौरी मैडम, बहुत रश है| कभी कभी लेट हो जाता है|” डिलिवरी बॉय
विनम्रता से बोला|
“जब सर्विस आप लोग नहीं दे सकते तो इतनी बड़ी बड़ी बात क्यूँ करते हो? मैं कस्टमर केयर
में इस बात की कम्प्लेंट करूंगी|” कन्या ने ग्राहकों का ब्रामहासत्र छोड़ा|
डिलिवरी बॉय चुपचाप वहाँ से चले गया| नकुल की माँ उस
लड़की को देखती रही|
Kitni marmik kahani hai😥
ReplyDeleteIsi tarah AAP likhte rahe aur aage badhte rahe
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