Thursday 26 February 2015

रेल बजट - एक बेटे का सपना

इस वक्त मेरे पास आंकड़े तो नहीं हैं, पर रेल बजट का सतही उद्देश्य मैंने समझने का प्रयास किया है| अब तक रेल मंत्रालय उस बेटे कि तरह था, जिसे उसका बाप (वित्त मंत्रालय) संभाल रहा था| अब अचानक बेटे का आत्म-सम्मान जागा है| अब वो अपने पिता पर निर्भर नहीं रहना चाहता| अपने पैरों पर खड़ा होना चाहता है| आधुनिक तकनीक जानना चाहता है, खुद को शक्तिशाली, कुशल-बुद्धि, स्वस्थ और शिष्ट बनाना चाहता है| उसके लिए अगले चार वर्षों में 8.5 लाख करोड़ रुपये चाहिए| क्योंकि अब पिता पर निर्भर नहीं है, तो लोगों को चिंता है| कहते हैं, बेटा झूठ बोल रहा है, हवा में उड़ रहा है| इस हालत में इसे कौन पैसे देगा? बेटे ने कुछ दोस्तों (PSU, Insurance companies, banks) की बात की है जो उसे उधार देंगे और उन्हें पैसे तुरंत वापस नहीं चाहिए, इसलिए बेटा अपना समय लेते हुए खुद के पैर पर खड़ा होगा और पैसे वापस करेगा| उसका मानना है कि समय के साथ साथ कुछ और दोस्त बनेंगे (private sector)...कुछ संपत्ति भी है..उसका इस्तेमाल भी करना चाहता है...उसे भविष्य उज्जवल दिख रहा है...आलोचकों के कटाक्ष वह नहीं सुनना चाहता| उसे खुद पर विश्वास है| वह अब आगे पड़ोसियों (former Railway ministers) का खिलौना नहीं बनना चाहता| वह अपने पैरों पर खड़ा होना चाहता है| देखना दिलचस्प होगा कि ये सपना पूरा होता है या नहीं|

Wednesday 25 February 2015

अन्ना माझी सटकली!

अन्ना जी के लिए मैं कोई अनादर प्रकट नहीं करना चाह रहा हूँ| मेरी समस्या यह है कि इस देश में विकास सबको चाहिए पर अब भी लोग रूमानी समाजवाद के जंजाल से निकल नहीं पाए हैं| किसी कारण से 1991 के बाद की हमारी विकास गाथा को भी कुछ इस तरह पेश किया गया है कि हमें अपने ही विकास से शिकायत है| ऐसा एक और अवसर अब सामने आया है| भूमि अधिग्रहण एक्ट पर लाए गए अध्यादेश (ordinance) को लेकर बहुत चिल्ल-पों मच रही है| योगेन्द्र यादव तो हमको अंग्रेजों के ज़माने में ले जा रहे हैं| कहते हैं सरकार आपके घर में घुस के बोलेगी “ये लो पैसा और निकलो”| कोई कह रहा है किसानों पर अत्याचार होगा| कोई कहता है यह सरकार प्रो-कौरोपोरेट है, और एंटी-पूअर है| यहाँ तक कि संघ भी विपक्षी दलों के साथ दिख रहा है| इन सबका मानना है कि अगस्त 2013 में लाया गया भूमि अधिग्रहण एक्ट कृषि हित में था, तथा सर्व-सम्मति से बना था, अतः वही एक्ट लागू होना चाहिए|

चलिए पहले इसी मिथक को तोड़ते हैं| 27 जून 2014 को ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा बुलाई गई एक बैठक में कई कांग्रेस शासित राज्य सरकारों ने इस बिल के कुछ मूलभूत अंशों का विरोध किया था| इनमें केरल, हरयाणा, हिमाचल प्रदेश भी शामिल थे| किसी को सहमति (consent) वाले खंड से परहेज था, तो कोई सामाजिक प्रभाव के आंकलन (social impact assessment) को स्वीकार नहीं करना चाह रहा था| तत्कालीन ग्रामीण विकास मंत्री नितिन गडकरी ने खुले मंच पर कहा था, “इस एक्ट से तो एक भी अधिग्रहण नहीं होने वाला, पता नहीं मेरी पार्टी ने सदन में इसका समर्थन क्यों किया|” गडकरी जी, आपको राजनीति का काफी अनुभव है, आप भली भांति जानते हैं इस बिल का विरोध करने का चुनाव पर सीधा असर क्या होता| पर मुझे आश्चर्य इस बात पर है कि कांग्रेस की राज्य सरकारों को विश्वास में लिए बिना ऐसा क़ानून कैसे बन गया| फिर पता चला, यह क़ानून युवराज की देन है| दीनबंधु, भक्त-वत्सल श्री राहुल गाँधी का सुझाया प्रोजेक्ट भला किसका विरोध सुनेगा| खैर, ज़मीनी हकीकत यह है, कि वास्तविक क़ानून लगने से अधिग्रहण इतना मुश्किल हो गया था कि निवेशक दूर से ही प्रणाम कर के निकल जाते| जैसा की चिदंबरम जी ने कहा है, “सर्वश्रेष्ठ नीति वही है जो निवेश लाये”| यही सत्य है| योगेन्द्र यादव जी,  आप समाजवाद का चोगा ओढ़ कर इससे मुँह मोड़ सकते हैं, किन्तु उससे सत्य नहीं छुपेगा| बिना निवेश के ना आप फ्री पानी दे पाएंगे, ना बिजली ना वाई-फाई| ज़ाहिर है, निवेश लाने के लिए कुछ बदलाव ज़रुरी थे|
 तो ये कौन से बदलाव थे? सरकार ने पांच तरह के प्रोजेक्ट्स के लिए लोक-सहमति (public consent) एवं सामाजिक प्रभाव के आंकलन (social impact assessment) जैसी शर्तों को हटा दिया| यह हैं सुरक्षा, ग्रामीण अधोसंरचना (rural infrastructure), अधोसंरचना (infrastructure), किफायती आवास (affordable housing) और औद्योगिक कॉरिडोर (industrial corridor)| कुछ मित्र मानते हैं कि इन श्रेणियों में किसी भी प्रोजेक्ट को भी अडजस्ट किया जा सकता है| गोया प्रोजेक्ट ना हुआ, भारतीय रेलवे का जनरल डब्बा हो गया| अडजस्ट कैसे करेंगे? आप रियल एस्टेट, होटल और प्रवासी कॉलोनियां बनाने को इनमें से किस श्रेणी में डालेंगे प्रभु? याद रखिये कि आवास भी किफायती होना चाहिए, वरना प्रोजेक्ट क्लियर नहीं होगा सर| ग्रामीण संरचना का अर्थ है मुख्यतः सिंचाई योजना, विद्युतीकरण, विद्यालय आदि| लोगों को आश्चर्य होना चाहिए कि इस “कृषि-प्रधान” देश में आज भी केवल 56% कृषि भूमि सिंचित है| संभवतः दो बार लगातार मानसून का निष्फल होना हमारी खाद्य सुरक्षा की कमर तोड़ देगा, और आप कहते हैं यह बदलाव कृषि विरोधी है? जिन लोगों ने दशकों तक इस देश में शासन करने के बाद भी हमको इस परिस्थिति में छोड़ा है, असल में वे किसान विरोधी हैं|  इसी प्रकार बिना विद्युतीकरण के, क्या हम ये उम्मीद करते हैं कि हम कृषि में आधुनिक तकनीक का प्रयोग करेंगे? बिना सुविधा दिए किसानों का समर्थन कैसे किया जाता है, ये कला आपको योगेन्द्र यादव और अन्ना हजारे सिखा सकते हैं| इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स (सड़क, बिजली, संचार माध्यम इत्यादि) में स्वामित्व तो भारत सरकार के पास ही रहेगा| बिना इन संसाधनों के कोई भी देश विकास करने के बारे में कैसे सोच सकता है| पिछली NDA सरकार ने इन प्रोजेक्ट्स पर विशेष ध्यान देते हुए करीब 6 करोड़ रोजगार पैदा किये| तो बजाये इसके कि हम इनका क्रियान्वयन आसान बनाएँ, हम लगे हैं जनहित का खोखला पोंगा बजाने में|  इसी प्रकार औद्योगिक कॉरिडोर जो कि बहुत ही कम क्षेत्र घेरते हैं, में बने हुए कारखानों में अनिवार्य रूप से विस्थापित परिवारों के एक सदस्य को रोज़गार की सुविधा मुहैय्या कराना आवश्यक है| तो क्या योगेन्द्र यादव और अन्ना हजारे,, कृषि-क्षेत्र को सशक्त करने, रोज़गार पैदा करने, या किफायती घर प्रदान करवाने के प्रयास को गरीब विरोधी कृत्य कहते हैं? आपका स्टैंड समझ नहीं पाता हूँ सर|
इस बिल को किसान विरोधी नारे के ध्वज तले कुचला जा रहा है| शायद इसलिए क्योंकि इस अध्यादेश में फसली क्षेत्र के अधिग्रहण की भी इजाज़त देता है| किन्तु, ये मान लेना कि हर अधिग्रहण खेतों का ही होगा, मुझे बड़ा बचकाना सा लगता है| अपवाद हो सकते हैं, किन्तु सरकार हमारी खाद्य सुरक्षा के साथ समझौता नहीं करेगी| इतना विश्वास तो करना चाहिए| वैसे भी ऐसे खतरे में NGO, राजनीतिक विरोधियों की कमी नहीं है| इसलिए इस पर आवश्यकता से अधिक चिंता करना, मुद्दे से भटकना होगा|

 एक मित्र ने अपने ब्लॉग पर एक दिलचस्प स्थिति का वर्णन किया है| मेरे मित्र के अनुसार वास्तविक क़ानून ना आने से नक्सलवाद को बढ़ावा मिल सकता है| (सोचने वाली बात यह है कि नक्सलवाद, समाजवादी किसान-प्रेमी शासन की आँखों के सामने पैदा हुआ था, तब यह क़ानून क्यों नहीं लाया गया)| पर मैं इसके उलट एक परिस्थिति का वर्णन करने का प्रयास करूँगा| मान लीजिए वास्तविक कानून बना रहता है| इससे भूमि अधिग्रहण लगभग असंभव हो जायेगा, अधोसंरचना विकसित नहीं होगी, व्यापार ठहर जायेगा,  रोज़गार पैदा नहीं होंगे| लोग अपनी “सुरक्षित” ज़मीन पर बिना रोज़गार के “सुरक्षित निठल्ले” बैठेंगे| खाली बैठे बैठे हुक्का फूकेंगे| बच्चों को खिलाने, पढाने के लिए पैसे नहीं होंगे| ज़ाहिर है, वे कुपोषित और अशिक्षित रहेंगे (ये यादव जी का प्रो-पूअर मॉडल है?) | अब क्यूंकि हमारी जनसँख्या का एक बहुत बड़ा भाग युवा है,  वह रोज़गार के अवसर से वंचित रह जायेगा| बेरोजगार युवाओं को भड़काने के लिए सारी राष्ट्र-विरोधी ताकतें एक साथ आ जाएँगी| दंगा फसाद होगा, अराजकता फैलेगी| तब अन्ना अनशन पर बैठेंगे कि दंगा रोको, और योगेन्द्र यादव कहेंगे देश राष्ट्र विरोधी ताकतों का शिकार हो रहा है| एक और दिलचस्प बात, इससे सबसे ज्यादा नुकसान गरीबों का ही होगा| ये कैसा लगा सर?

अंत में मै बस यही कह सकता हूँ, कि राजनैतिक दलों को सरकार अनदेखा कर सकती है, जनता या किसानों को नहीं| इस दिशा में सरकार ने किसानों की शिकायत के निपटारे के लिए एक कमिटी गठित की ही| यह स्वागत-योग्य है| दूसरी बात, अध्यादेश का क़ानून में बदलना ज़रुरी है| निवेश अध्यादेशों पर नहीं आता| पर निश्चय ही जेटली जी खुद इतने समझदार हैं| शायद अब समय आ गया है कि समाजवाद के बहु-प्रसारित आदर्श राज्य की निद्रा से हम पूरी तरह जागें और इतिहास से सीखते हुए अपना कल्याण करें| बाकी रवीश कुमार जी के शब्दों में, “जो है, सो तो हैय्ये है”|


पी.एस.: एक बार कोई किसान प्रेमी पार्टी से पूछे कि महाराष्ट्र में आत्म-हत्या करते किसान
पिछले
10 वर्षों से किसके शासन में जी रहे थे|

Tuesday 24 February 2015

Sorry Rajanbhai

As it appears, my previous post on comparing Hitler and Modi against Dr Rajan was based on manipulated media reports which constantly portrayed his statement as a veiled attack on government. Dr Rajan was in fact, supporting free market economy (the missing fourth pillar of Fukuyama's model) and hence cannot be against the current Government. I am glad that my accusation was wrong, because, as I mentioned earlier, I think he is one of the best brains in our country. I still maintain that Hitler vs Modi is a poor comparison and nothing has changed on that part. Having said that, I should point out that the opinion I had about his speech till yesterday is the prevailing opinion. I debated on Dr Tharoor's page with quite a few people, some of whom praised Dr Rajan for his courage to speak the truth against the AUTOCRAT. One particular guy suggested we needed Indira Gandhi and my heart wept with blood at the prospect of such a horrendous situation. Anyway, in conclusion:
a) I will need to be more careful about media reports. My apologies
b) Media is playing a poor, if not utterly biased role in formulating public opinion. So try to cross check the sensational reports with other sources
Jai Hind!

Sunday 22 February 2015

Dear Rajanbhai, this is not fair!

It has been quite sometime now that people have been comparing Adolf Hitler with Narendra Modi. During the Lok Sabha elections campaign, I had seen just random people making this pointless comparison. I had told them that either they had a pathetic knowledge of history, or they were deliberately presenting false/distorted arguments due to vested interests. I had hoped that these arguments will be put to rest after the result of the general elections in May 2014, but as it appears, they are still coming. This time, it has come from none other than Governor of the Reserve Bank of India, Dr Raghuram Rajan. This was shared and supported by Dr Shashi Tharoor. Now, I consider these two as one of the best brains in India, and so I think it is important to answer this. Here is an honest attempt from a wannabe historian to counter Dr Rajan's claims.

Okay, let us start by making a fair comparison Dr Rajan and Dr Tharoor,

1. Hitler spewed venom against Jews and his aim, as he mentioned in his book, was to annihilate the Jew community all over the world. The PM has never shown even the slightest form of that type of sentiment for any community.

2. The popularity of Hitler wasn't really as much as is shown. The NAZI party fell to 196 seats from 230 (out of 584 seats) in Nov 1932 elections. He came to power because the socialists and communists did not unite. Narendra Modi won spectacularly in-spite of clubbing together of his opponents. His popularity is genuine and much more than that of Hitler.

3. Soon after Hitler became Chancellor in 1933, he hatched a conspiracy of burning the Reich (their parliament) and eliminated his opponents by blaming it on them and getting rid of them one after the other. So much so, that in Nov 1933 German Federal elections (only 11 months after he became chancellor of Germany), there was no opposition party and hence, NAZI party won 661 out of 661 seats. I see absolutely no reason why we should think that Indian opposition parties are facing any such threat. They lost fair and square in Lok Sabha elections as well as subsequent state elections (except for Delhi of course)

4. 1934, there was a symbolic referendum to show that Hitler was the true leader (Fuhrer) of Germany and the constitution was amended to make him above everything/everyone else. Are you saying Mr Rajan/ Mr Tharoor, that there is even the slightest possibility that Mr Modi is going to or even intends to do any such thing?

Obviously, as stated from above, the popularity of Hitler was manufactured and the perceived STRONG government was in reality, DICTATORSHIP where there was no space for opposition. Modi's victory on the other hand is fully democratic and it was in the presence of powerful opposition parties. This is not DICTATORSHIP but a genuinely STRONG government.

Finally, coming to the accountability part, I don't know why Mr Rajan thinks this Government is not being accountable.

1. Black money has already started flowing in (more is to come)
2. The Home Secretary was removed as soon as it was found that he was exerting undue influence over CBI to protect certain accused.
3. The Government, under the supervision of NSA, Mr Ajit Doval carried on an operation to bring those guilty people to the book who were leaking the crucial information to corporate houses.
4. The ministers and bureaucrats are working really hard to meet the challenging targets set by the PM himself.

So, gentlemen, I find your subtle accusations pointed at the government quite stupid, baseless and as I showed, all of them get destroyed in the face of historical as well as other empirical evidences. This is not fair!, is this?

Monday 16 February 2015

दिल्ली चुनावों के विश्लेषण का विश्लेषण

दिल्ली चुनाव के बाद सब ज्ञानी लोग अपना अपना निष्कर्ष निकालने में जुट गए| लोक सभा चुनावों के बाद जिनकी कुर्सी पर आग लग गयी थी, उनको बड़ी राहत मिली| जिसके फलस्वरूप एक और बार उन्होंने अपनी मूर्खता का परिचय दिया| कल के "दि हिंदू" का कार्टून इस घटना को बहुत ही उचित रूप से दर्शाता है, जिसमे हाथी रुपी दिल्ली चुनाव को पहचानने में सब अपना अपना हिसाब लगा रहे हैं| पर मैं कुछ विशेष घटनाओं की ओर आपका ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ:
१. अभय दुबे (NDTV पर): अरविन्द केजरीवाल जीत के बाद अपने परिवार को साथ लाए जबकि मोदी सिर्फ़ अपने लौह पुरुष वाली छवि की ही चिंता करते हैं| भारतीय समाज अब ये सब नहीं पसंद करता|
प्रत्योत्तर: बात सही है दुबे जी| लोक सभा चुनाव के बाद मोदी जी ने जो अपनी माता के चरण छूए थे, वो किसी परिवारवादी पुरुष की निशानी थोड़ी है|
२. सिद्धार्थ वरदराजन और कोई तो भी एक महिला (ZEE पर): त्रिलोकपुरी में दंगे करवाकर हारने के बाद आपको कैसा लग रहा है?
प्रत्योत्तर: जी बहुत अच्छा लग रहा है| प्लान तो महाराष्ट्र, झारखण्ड, हरयाणा में भी यही था, पर तय्यारी करते करते चुनाव ही जीत गए|
३. लगभग सभी (विशेषकर AAPtards): मोदी जी को अब समझ लेना चाहिए कि सिर्फ़ बातों से कुछ नहीं होता| जनता को अब काम चाहिए| वरना यही हश्र होगा|
प्रत्योत्तर: यदि आप थोडा कष्ट उठा कर पता करते कि केन्द्र सरकार ने क्या किया है, तो ऐसी मूर्खतापूर्ण बातें ना करते| मैंने कुछ समय पहले कोरा में यह उत्तर लिखा था| आपकी सेवा में,
http://www.quora.com/What-has-Modi-done-since-becoming-PM

Tuesday 10 February 2015

ये क्रांति रक्त रंजित नहीं है

ये क्रान्ति रक्त-रंजित नहीं है| ये क्रान्ति भारत की गांधीवादी संस्कृति का परिचायक है| ये क्रान्ति माओ के "शक्ति बन्दूक की नली से बहती है" (power flows through the barrel of a gun) जैसे सिद्धांतों पर करारा प्रहार है| अब परम्परागत राजनेताओं के "बदलना है तो चुनाव लड़ के दिखाओ" जैसी परम्परागत चुनौतियाँ निराशा के साथ नहीं देखी जाएँगी| हमने यौवन में यह क्रान्ति देखी यह हमारा सौभाग्य है| हम फ्रेंच क्रान्ति नहीं देख पाए, रुसी क्रान्ति भी नहीं देख पाए, विश्व युद्ध भी नहीं| पर शायद ये  क्रान्ति उनसे बेहतर है| ये क्रान्ति रक्त-रंजित नहीं है|