इस वक्त मेरे पास आंकड़े तो नहीं हैं, पर रेल बजट का सतही उद्देश्य मैंने समझने का प्रयास किया है| अब तक रेल मंत्रालय उस बेटे कि तरह था, जिसे उसका बाप (वित्त मंत्रालय) संभाल रहा था| अब अचानक बेटे का आत्म-सम्मान जागा है| अब वो अपने पिता पर निर्भर नहीं रहना चाहता| अपने पैरों पर खड़ा होना चाहता है| आधुनिक तकनीक जानना चाहता है, खुद को शक्तिशाली, कुशल-बुद्धि, स्वस्थ और शिष्ट बनाना चाहता है| उसके लिए अगले चार वर्षों में 8.5 लाख करोड़ रुपये चाहिए| क्योंकि अब पिता पर निर्भर नहीं है, तो लोगों को चिंता है| कहते हैं, बेटा झूठ बोल रहा है, हवा में उड़ रहा है| इस हालत में इसे कौन पैसे देगा? बेटे ने कुछ दोस्तों (PSU, Insurance companies, banks) की बात की है जो उसे उधार देंगे और उन्हें पैसे तुरंत वापस नहीं चाहिए, इसलिए बेटा अपना समय लेते हुए खुद के पैर पर खड़ा होगा और पैसे वापस करेगा| उसका मानना है कि समय के साथ साथ कुछ और दोस्त बनेंगे (private sector)...कुछ संपत्ति भी है..उसका इस्तेमाल भी करना चाहता है...उसे भविष्य उज्जवल दिख रहा है...आलोचकों के कटाक्ष वह नहीं सुनना चाहता| उसे खुद पर विश्वास है| वह अब आगे पड़ोसियों (former Railway ministers) का खिलौना नहीं बनना चाहता| वह अपने पैरों पर खड़ा होना चाहता है| देखना दिलचस्प होगा कि ये सपना पूरा होता है या नहीं|
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